पुंसवन संस्कार का मुख्य उद्देश्य गर्भ में स्थित सन्तान की रक्षा करना है,जब तक सन्तान माता के गर्भ में रहती है,तब तक उसके शरीर एवं मन को इच्छानुसार ढाला जा सकता है। इसलिए माता का कर्तव्य है कि सन्तान के शारीरिक विकास को ध्यान में रखते हुए वह अपने खान-पान, रहन-सहन और व्यवहार को उत्तम बनाए रखे ताकि सन्तान पर किसी भी प्रकार का कुप्रभाव न पड़े। इस भाव को व्यक्त करने के लिए पति पत्नी के हृदय का स्पर्श करता है और फिर दोनों एक दूसरे के साथ वादा करते हैं कि वें केवल एक-दूसरे के प्रति ही नही अपितु सन्तान के प्रति भी जिम्मेदारी निभायेंगे।
||•सीमन्तोन्नयन संस्कार•||
सीमन्तोन्नयन संस्कार का उद्देश्य है कि माता इस बात को समझ ले कि अब से अपनी सन्तान के शारीरिक विकास के साथ साथ मानसिक विकास की भी जिम्मेदारी उस पर आ पड़ी है, अब उसके हर विचार का प्रभाव उसके गर्भ में प्राण ले रही सन्तान के मस्तिष्क पर पड़ रहा है। इस संस्कार में पति अपने हाथ से स्वपत्नी के केशों में सुगंधित तेल डालकर उन्हें कंघी से संवारता है, जिसका अभिप्राय यही है कि इस समय पति और पत्नी दोनों का ध्यान अपने तथा सन्तान के मानसिक विकास पर केन्द्रित हो जाना चाहिए। पति-पत्नी जैसा मानसिक जीवन व्यतीत करेंगे, उसी की छाप सन्तान पर पड़ेगी।
||•नामकरण संस्कार•||
संसार का सब व्यवहार नाम के आधार पर ही चलता है। सन्तान के नाम का चयन करने में सतर्कता होनी चाहिए क्योंकि वह नाम आयु भर के लिए है। नामकरण संस्कार का उद्देश्य मात्र संबोधन हेतु एक शब्द चुनने तक नही है।यह अति महत्वपूर्ण कार्य है इसलिए प्रत्येक माता पिता का कर्तव्य है कि सन्तान को ऐसा नाम दे, जो उसे हर समय जीवन के किसी लक्ष्य, किसी उद्देश्य का स्मरण कराता रहे। अपने नाम को बालक जब बार बार सुनेगा, तो उसका हृदय एवं मस्तिष्क अवश्य ही नाम में निहित अर्थ की भावना से प्रभावित होगा।
||•मुण्डन संस्कार•||
मुण्डन का उद्देश्य अलंकार की दृष्टि से मस्तिष्क के मल को साफ कर देना है। केशों का मुण्डन एक तरह से अविद्या के मुण्डन का प्रतीक है। जब शिशु गर्भ में होता है तभी उसके भीतर के मस्तिष्क की सुरक्षा हेतु बाल आ जाते हैं, जन्म के लगभग एक वर्ष बाद इन मलिन केशों का कर्तन बालक के हर्ष और उत्साह में वृद्धि करता है। इसका सम्बन्ध बालक के मस्तिष्क के साथ होने के कारण इसे धार्मिक संस्कार का रूप दिया गया है।
||•विवाह संस्कार•||
विवाह दो आत्माओं का पवित्र बन्धन है। विवाह का अर्थ है - विशिष्ट उत्तरदायित्वों का निर्वहन। दो प्राणी अपने अलग-अलग अस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबन्ध मात्र नहीं हैं, एक-दूसरे को अपनी योग्यताओं और भावनाओं का लाभ पहुँचाते हुए गाड़ी में लगे हुए दो पहियों की तरह प्रगति-पथ पर अग्रसर होते जाना ही विवाह का उद्देश्य है। विवाह का उच्चतम आदर्श उत्तम संतानोत्पत्ति है, श्रेष्ठ परिवार निर्माण से ही श्रेष्ठ समाज और राष्ट्र का निर्माण सम्भव है।